
राजस्थानी भाषा बोलियाँ एवं साहित्य
- राजस्थान के संबंध में एक लोकोक्ति प्रचलित है- ‘कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बाणी’
- राजस्थान की राजभाषा हिंदी तथा मातृभाषा राजस्थानी है
- 21 फरवरी की ‘राजस्थानी भाषा/मातृ भाषा’ देिवस तथा 14 सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जात. है।
- राजस्थानी बोलियों का सर्वप्रथम उल्लेख तथा वैज्ञानिक वर्गीकरण जॉर्ज अक्राह्मम ग्रियर्सन ने ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया में किया।
- राजस्थान का साहित्य सांस्कृतिक पदचिह्न में योगदान देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- राजस्थान का साहित्य बहुत विविध है जिसे सदियों से स्थानीय लोगों द्वारा मान्यता प्राप्त गद्य और कविता के रूप में संरक्षित किया गया है।
राजस्थानी साहित्य की उत्पत्ति
- 1000 ई. से राजस्थानी साहित्य की विविध विधाओं में रचना की गई है। हालांकि, यह आम तौर पर स्वीकार किया जाता है कि सूर्यमल्ल मीसण के लेखन ने समकालीन राजस्थानी साहित्य की शुरुआत को चिह्नित किया।
- हालोंकि, ऐसी कोई निर्धारित तिथि या प्रासंगिक स्रोत नहीं है जो हमें राजस्थानी साहित्य की उत्पत्ति के सटीक समय के बारे में सूचित कर सके।
मरुभाषा/राजस्थानी भाषा के स्रोत
- कुवलयमाला –
- उद्योतन सूरी द्वारा 8वीं सदी में लिखित ग्रन्थ जिसमें 18 देशी भाषाओं का उल्लेख है, जिसमें ‘मरु भाषा’ का भी उल्लेख किया हैं, जिसे वर्तमान में मारवाड़ी कहा जाता है।
- पिंगल शिरोमणी –
- कवि कुशललाभ (मारवाड़ी भाषा का उल्लेख)
- आइने-अकवरी –
- अबुल फजल (मारवाड़ी भाषा का उल्लेख)
- दी एनाल्स एण्ड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान –
- कर्नल जेम्स टॉड (1829 ई.) द्वारा लिखित ।
- इसमें राजपूताना क्षेत्र के लिए राजस्थान, राय्थान, रजवाड़ा शब्दों का उल्लेख हैं।
- इसमें सर्वप्रथम किसी क्षेत्र विशेष के लिए राजस्थान शब्द का प्रयोग किया गया।
- जॉर्ज थॉमस –
- राजस्थान के लिए सर्वप्रथम ‘राजपूताना’ शब्द का प्रयोग किया। जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन –
- राजस्थान क्षेत्र की भाषा के लिए सर्वप्रथम ‘राजस्थानी’ शब्द का प्रयोग किया।
- उन्होंने राजस्थानी भाषा का सर्वप्रथम वैज्ञानिक अध्ययन किन।
राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति
- राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश से हुई
- डॉ. जॉर्ज अब्राहम एवं पुरुषोत्तममेनारिया ने रज्जस्थान भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी प्राकृत के नागरी अपभ्रंश से होना बताई है।

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन के अनुसार राजस्थान भाषा का वर्गीकरण-
- पश्चिमी राजस्थानी
- मध्य-पूची राजस्थानी
- दक्षिणी राजस्थानी
- उत्तर-पूर्वी राजस्थानी
- दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान
डॉ. एल.पी. टेस्सीटोरी के अनुसार राजस्थान भाषा का वर्गीकरण –
- पूर्वी राजस्थानी (ढूँडाड़ी) – खड़ी जयपुरी, अजमेरी, तोरावाटी, काठेडी, राजावट, चौरारी, हाड़ौती की बोलियाँ।
- पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी) – खड़ी जोधपुरी, शेखावाटी, थली, बीकानेरी, डटको, खेराड़ी, गौड़वाड़ी।
प्रमुख बोलियाँ –
- A. भारवाड़ी बोली
- जोधपुर के आरा-पारा का क्षेत्र।
- उत्पत्ति – 8वीं सदी में शौरसेनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश से।
- प्राचीनतम प्रमाण – कुवलयमाला ग्रन्थ (उद्योतन सूरी द्वारा रचित) से।
- यह राज्य में सर्वाधिक बोली जाने वाली बोली है।
- इस भाषा का साहित्यिक रूप डिंगल भाषा है।
- प्राचीन जैन साहित्य और मीराबाई के पद इसी भाषा में हैं।
प्रमुख उपबोलियों –
- मेवाड़ी, बागड़ी, शेखावाटी, गौड़वाड़ी, थली, नागौरी, देवड़ावाटी, खेराड़ी।
- (i) मेवाड़ी बोली
- यह मारवाड़ी की एक प्रमुख उपबोली है।
- मेवाड़ क्षेत्र में बोली जाती है।
- यह राजस्थान की दूसरी सबसे प्राचीन घोली तथा दूसरी महत्त्वपूर्ण थेोली है।
- महारणा कुम्भा ने विजय स्तम्भ पर इसी भाषा में नाटक लिखे हैं।
- (ii) थली बोली
- बीकानेर के आस-पास बोली जाती है।
- (iii) खेराड़ी
- यह बोली ढूँढड़ी, नेवाड़ी और हाड़ौती का मिश्रण है।
- (iv) वागड़ी
- डूंगरपुर तथा डाँसवाड़ में बोली जाने वाली बोली।
- इस पर मेवाड़ी तथा गुजराती बोली का प्रभाव है।
- (v) शेखावाटी
- शेखावाटी क्षेत्र की यह खड़ी व कर्कश बोली है।
- (vi) गोड़वाड़ी
- गौड़वाड़ प्रदेश में (लूणी नदी के खारे पानी का अपवाह क्षेत्र)
- ‘बीसलदेव दसो’ (नरपति नाल्ह द्वारा रचित) नामक गंध इसी बोली में रचित है।
- (vii) देवडावाटी –
- सिरोही के देवड़ा शासकों की बोली।
- B. ढूँढाड़ी बोली
- जयपुर के आस-पास बोली जाती है।
- इस बोली पर ब्रजभाष और गुजराती भाषा का प्रभाव हैं।
- ढूँढाड़ी बोली का सबसे प्राचीरम प्रमाण 18वीं सदी के ग्रन्थ ‘आठ देस गुजरी’ नामक ग्रन्थ में मिलता है।
- उपबोलियाँ
- तोरावाटी, रजावाटी, नागरचौल, काठेड़ी, चौरासी, उदयपुरवाटी, हाड़ौती,अजमेरी, किशनगढ़ी।
- (i) तोरावाटी बोली
- कांतली नदी का अपवाह क्षेत्र तोरावाटी प्रदेश कहलाता है। यह इस प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा है
- (ii) राजाचाटी
- सवाई माधोपुर और जयपुर के सीमावर्ती क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली।
- (iii) काठेड़ी
- जयपुर-दौसा का सीमावर्ती क्षेत्र में।
- (iv) चौरासी
- बूंदी क्षेत्र में
- (v) नागरचोल
- टॉक-जयपुर के सीमावर्ती क्षेत्र में।
- (vi) उदयपुरवाटी
- झुंझुनूँ-जयपुर के सीमावर्ती क्षेत्र में।
- C. हाड़ौती बोली
- हाड़ौती क्षेत्र में बोली जाने वाली ढूँढाड़ी की उपबोली।
- कवि सूर्यमल्ल मीसण ने अपने काव्य ग्रन्थों में इसी बोली का प्रयोग किया है।
- एम. केलांग ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दी ग्रामर’ में हाड़ौती शब्द का भाषा के अर्थ में सर्वप्रथम प्रयोग किया।
- D. मेवाती बोली
- मेवात क्षेत्र के आस-पास मेव जाति के मुसलमानों द्वारा बोली जाती है।
- उत्पत्ति/विकास की दृष्टि से यह पश्चिमी हिन्दी और राजस्थानी बोली के मध्य सेतु का कार्य करती हैं।
- चरणदासी संतों का साहित्य तथा लालदासी संतों का साहित्य इसी भाषा में हैं।
- ‘सहज प्रकाश’, ‘सोलह तिथि’, ‘दयाबोध’ तथा ‘विनयमालिका’ नामक ग्रन्थ इसी बोली में रचित हैं।
- E. मालवी बोली
- यह मधुर व कर्णप्रिय बोली है।
- मालवा के राजपूतों द्वारा बोली जाने वाली भाषा।
- उपबोलियाँ –
- (i) नीमाड़ी बोली
- दक्षिणी राजस्थान और उत्तरी मालवा क्षेत्र की बोली है।
- (ii) रांगड़ी बोली
- मालवी और मारवाड़ी का मिश्रण
- यह मालवा के राजपूतों की कर्कश बोली है।
- F. अहीरवाटी/राठी बोली
- अलवर के मुंडावर व बहरोड़ तहसील में बोली जाती हैं।
- यह बोली हरियाणा की बांगरू और राजस्थानी की मेवाती बोली के मध्य बोली जाती है।
- जोधराज का ‘हम्मीर महाकाव्य’ तथा ‘अलवर के रसखान (अलीबख्श)’ के
- ख्याल नाट्य इसी भाषा में लिखे हुए हैं।
Name | Links |
---|---|
JOIN Telegram Channel | Click Here |
Subscribe YouTube Channel | Click Here |
For More | Home Page |